Thursday, September 4, 2008

Some verses that were written once by someone and from some unknown dimension, just slip into my life to speak my mind...

कभी-कभी बाज़ार में यूँ भी हो जाता है
कीमत ठीक थी जेब में इतने दाम नहीं थे
ऐसे ही इक बार मैं तुमको हार आया था।

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तू तो नफ़रत भी ना कर पायेगा इस शिद्दत के साथ
जिस बला का प्यार तुझसे बेखबर मैनें किया।

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ये कैसे रिश्तों में फंस गया मै, ये कैसे रिश्ते निभा रहा हूँ
जता रहा हूं किसी से चाहत, किसी से नफ़रत छुपा रहा हूँ।

मैं ख़ुद को बिल्कुल बदल चुका हूं,तेरी हदों से निकल चुका हूँ
के वक्त रहते सम्हल चुका हूं, यकीन ख़ुद को दिला रहा हूँ।

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ज़रा आवाज़ का लहज़ा तो बदलो
ज़रा मद्धिम करो इस आँच को सोना
कि जल जाते हैं कंगुरे नर्म रिश्तों के
ज़रा अल्फ़ाज़ के नाखुन तराशो
बहुत चुभते हैं जब नाराज़गी से बात करती हो।

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तेरे लिये तो मैनें यहाँ तक दुआयें की
मेरी तरह से कोई तुझे चाहता भी हो।

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हमारे बीच जो भी अनकहा था
वो शब्दों से मिटाया जा रहा है।

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