Wednesday, September 16, 2015

हिन्दी साहित्य के हत्यारे

क्वोरा पर अक्सर लोग पूछते हैं कि हिन्दी साहित्य में नया और अच्छा क्या लिखा जा रहा है? सबसे बड़े उपन्यासकार, नए कहानीकार, कोई नया नाटक, नए कवि - कुछ नयी रचनाएं नयी सदी का प्रतिनिधित्व करती हुयी....  कई बार प्रयास किया कि लोगों को बताने के लिए ही सही, कुछ नाम दे सकूँ - ये एक नए और बढ़िया लेखक हैं, नयी कहानियों का पता यहाँ मिलेगा, ये पत्रिका उम्दा है वगैरह वगैरह !

अफ़सोस की बात है लेकिन हिंदी साहित्य मृत है - अभी से नहीं, पिछले कई वर्षों से ! हाँ, कभी-कभार एक-दो धड़कन या नाड़ी शायद चल जाती हो लेकिन लाश सड़ने की हद तक जा चुकी है. और हिन्दी साहित्य को मारा किसने ? अंग्रेज़ी ने या सरकार ने नहीं, गरीबी या बाज़ारवाद ने नहीं .…  हिन्दी साहित्य के हत्यारे हैं उसके अपने पुरोधा, युग-प्रवर्तक, और वाचक. वे ही पुरोधा जिन्होंने अपनी राजनैतिक और वैयक्तिक महत्वाकांक्षाओं के चलते हिन्दी साहित्य की बलि चढ़ा दी। पत्रिकाओं पर कब्ज़ा किया, केवल उनको छापने दिया जो चाटुकार थे या घटिया या बिकाऊ या ये सभी कुछ। जो वाम नहीं था, उसकी भद्द पीटी. जो राजनीति के दलदल में लंगोट खोल कर उतरने को तत्पर थे, उनको छापा, उनको ही पुरस्कार दिए, और उनको ही भौंडेपन के साथ लेखक-आलोचक-नीति नियंता नियुक्त करवाया। हिन्दी के कवि-सम्मलेन तो कब का चुटकुलेबाज़ी, बेहूदगी, राजनीति, गाली-गालौच, और अश्लीलता का पर्याय बन चुके हैं।

दर असल ये सब पढ़ा तो बहुत बार था - रवीन्द्र नाथ त्यागी की कलम से, जहाँ वो एक तरफ अपने खेमे के भारती जी को भगवान बनाते थे और दूसरे खेमे के अज्ञेय को शैतान। वैसे ही काँता भारती की किताब "रेत की मछली" भारती का दूसरा पहलू खोलती दिखती है। और पता चलता है कि हमाम में सब ही.…… खैर, आज ये सब उभर आया क्योंकि कहाँ से तो होते हुए पता चला की मन्नू भंडारी ने एक लेख लिखा था तहलका के लिए "कितने कमलेश्वर"। बस वही पढ़कर एक दबा हुआ गुबार सतह पर आ गया.

हिन्दी साहित्य के इन हत्यारों की सूची इतनी छोटी नहीं और कुछ हत्यारे अभी भी इस लाश को खसोटने में व्यस्त हैं - नामवर सिंह, मुद्राराक्षस, काशीनाथ सिंह, उदय प्रकाश, और भी कई राजनैतिक भाण्ड! इन सबको हिन्दी साहित्य की मृतात्मा की हाय लगे। 

Sunday, September 6, 2015

What do Teachers make?

Long back, I had read a comic-strip by a school teacher from USA. He tried answering what do teachers make. As I recall, the answer was "Life" or "humans". Well, when I left everything long back and chose being a professor over business, I had my doubts. When I went through periods of rude and selfish behavior of many students, the doubts increased. But all this while, there were moments that held me together to prove time and again that teachers do make lives. 


Some long lost FDP participant sending wishes and ice creams from their latest business venture, someone from a continent away making a call, someone from 3 batches past sending a line..... it is not the quantum or material value of the effort but the sheer gesture that matters. Last year a whole PGP section poured into my office with a small pouch of candies and the gesture still warms my heart. This year, the FPM class filled the board with so many of the references I made during the class, I ended up clicking the whole 3 parts of the white board. So they had poetry, Simpson, camera, French, politics, and what not... after all, I do make lives :)





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