Saturday, April 22, 2017

क्या कहूँ आज जो नहीं कही...

आज एक नए दोस्त ने टोका बहुत कम लिखने को लेकर... इस मैसेज के साथ -


2007-2011 average posts= 40,
2012-2016=15
2017 4 months gone = 1

सांख्यिकी सही हो या गलत, पता नहीं, बात तो सही ही थी। पता नहीं अब लिखना कम क्यों हो गया है। काम बहुत करने लगे हों, ऐसा तो नहीं है। लिखने का मन भी शायद बहुत करता है। विचार भी, ऊल -जुलूल ही सही, कम नहीं होते। उस नए दोस्त ने कहा कि प्रोफेसर बनने के बाद लिखना, खुलना, कहना मुश्किल होता हो शायद। शायद, होता होगा।
फिर सोचा।
ऐसा होने के कुछ कारण समझ आये... कई ध्यान ही नहीं आये.. कुछ कुछ समझ नहीं आये... कुछ समझना नहीं चाहे। जो भी समझा या जो भी नहीं समझा , वो कहना बिलकुल भी नहीं चाहा !

ऐ नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना 
पहले माज़ी का कोई ज़ख्म तो भर जाने दे।

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