Monday, March 16, 2015

आज तुमको फिर निहारा

कई दिन के तोड़ देने वाले बुखार से उठ कर घर से ऑफ़िस आ जाना और कुछ देर काम की कोशिश… पढ़ाई का प्रयास। और फिर जब हिम्मत जवाब दे जाए तो?

अपने पुराने फेसबुक स्टेटस पढ़ना, वो दिन याद करना जब वो  ख़ास लाइन लिखी गयी थी... अपने ही पुराने ब्लॉग की परतें उघाड़ना… जैसे टहलते हुए अपने पुराने कमरे में पहुँच जाना और हर चीज़ को वैसे ही रखा पाना जैसे उसे छोड़ कर गए थे… और फिर हर चीज़ को आँखों में भर लेना, हाथों से उसकी छुअन को पकड़ लेना.... कि इस बार जो ये याद का कमरा छूटेगा तो फिर शायद न मिले… कम-अज़-कम अगली बार अतीत के थपेड़े लगने तक तो नहीं.... सो आज यही किया - बड़ी देर तक पुराने दिन निहारे।

कब यादों का ज़ख्म भरे, कब दाग मिटे
कितने दिन लगते हैं भुलाते, देख रहा हूँ

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