Monday, June 24, 2013

बैग वो जिसमे मेरे-तुम्हारे कपड़े कुछ रातों सोये थे...

What? I am writing poems for an old, torn, worn-out bag now? Well, you know why this bag was so special? Because it was my mate in all my travels from IIMA to home and from IIMA to IIM Indore and from IIMA to anywhere!! This was a magical bag, where you could fill all you want and then, a little more could be filled. Once I won a bet on that too - this bag, seemingly, had an infinite and ever expanding space inside. 

Anyhow, these are the last picture of my beloved buddy bag of best days... for today, I filled it (partially, as there is infinite space inside, you see) with some stuff and dispatched for Uttarakhand. 
As a final favor, this bag has inspired a nazm too: 

एक एक कर धागे टूट रहे हैं सारे ,
एक एक कर रिश्ते सारे
तोड़ रहा हूं।

एक महीना बीता जब
वो कलम तुम्हारी
दी थी कहीं किसी को
और फिर बिना लिये ही
सरक लिया था
कई महीने पहले उससे
गिफ़्ट जो तुमने किये थे
सारे
कुर्ते मैंने
दान दिये थे।
पिछले हफ़्ते तोड़ दिया
जो फ़ोन तुम्हारे संग लिया था,
बैग वो जिसमे मेरे-तुम्हारे
कपड़े कुछ रातों सोये थे,
सोफ़ा जिसपर
हम-तुम दोनों संग बैठे थे
वो दीवान
तुम्हारी ज़ुल्फ़ की
खुशबू वाला

और तुम्हारे हाथों
सँवरी तस्वीरें सब,
कई किताबें
जिन पर दो-दो नाम लिखे थे,
वालेट
जिसमें इक तस्वीर थी


और वो घड़ी
कि जिसका
वक्त तुम्हारा था,
छोड़ दिये हैं,
गुमा रहा हूँ,
तोड़ दिये हैं,
भुला रहा हूँ
मेहनत करनी पड़ती है
जितनी इक रिश्ता
बुनने में,
उतनी ही मैं लगन से उस
रिश्ते के धागे
जला रहा हूँ!

1 comment:

deep said...

बहुत खूब..
Gulzar part-II in the making..

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