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Circa 1997, I was in class 10th, when I started pursuing Hindi-Urdu poetry actively as an enthusiast. I was lucky to chance upon two books at that time, which made me understand the depths of poetry in great detail.
Second book was "दीवान-ए-ग़ालिब" by Ali Sardar Jaafri, which had meanings of difficult Urdu words as well as contextual explanations, wherever required. That helped me in understanding Urdu and setting the technical details for future years of writing.
The first book, although did not bestow any great technical skill like the second one, was more influential, for it made me fall in love with the sheer joy of Urdu poetry. The book was "ujaale apni yaadon ke" (उजाले अपनी यादों के) by Bashir Badr. Here is quoting some select verses from him... as always, this is just indicative and many great gems may remain hidden. If you want more pearls, take a dive yourself :)
चाँद ने रात मुझको जगा कर कहा
एक लड़की तुम्हारा पता ले गई
***
मुख़ालिफ़त से मेरी शख़्सियत सँवरती है
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ
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मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला
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Circa 1997, I was in class 10th, when I started pursuing Hindi-Urdu poetry actively as an enthusiast. I was lucky to chance upon two books at that time, which made me understand the depths of poetry in great detail.
Second book was "दीवान-ए-ग़ालिब" by Ali Sardar Jaafri, which had meanings of difficult Urdu words as well as contextual explanations, wherever required. That helped me in understanding Urdu and setting the technical details for future years of writing.
The first book, although did not bestow any great technical skill like the second one, was more influential, for it made me fall in love with the sheer joy of Urdu poetry. The book was "ujaale apni yaadon ke" (उजाले अपनी यादों के) by Bashir Badr. Here is quoting some select verses from him... as always, this is just indicative and many great gems may remain hidden. If you want more pearls, take a dive yourself :)
चाँद ने रात मुझको जगा कर कहा
एक लड़की तुम्हारा पता ले गई
***
मुख़ालिफ़त से मेरी शख़्सियत सँवरती है
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ
***
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है
बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आयेगी
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है
मैं ये मानता हूँ मेरे दिये तेरी आँधियोँ ने बुझा दिये
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है
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अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे
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मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी ना मिला
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी ना मिला
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड आया था
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी ना मिला
बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी ना मिला
खुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने
बस एक शख्स को मांगा मुझे वही ना मिला
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मेरी शोहरत सियासत से महफ़ूज़ है
ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गई
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वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो दुआ में मेरी असर न हो
मेरे बाज़ुओं में थकी-थकी, अभी महव-ए-ख़्वाब है चांदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो
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आस होगी न आसरा होगा
आने वाले दिनों में क्या होगा
मैं तुझे भूल जाऊँगा इक दिन
वक़्त सब कुछ बदल चुका होगा
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मुझसे बिछड़ के ख़ुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो
तुम तन्हा दुनिया से लड़ोगे
बच्चों सी बातें करते हो
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दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही
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मेरे साथ तुम भी दुआ करो यूँ किसी के हक़ में बुरा न हो
कहीं और हो न ये हादसा कोई रास्ते में जुदा न हो
वो फ़रिश्ते आप ही ढूँढिये कहानियों की किताब में
जो बुरा कहें न बुरा सुने कोई शख़्स उन से ख़फ़ा न हो
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मैं ख़ुद भी एहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए
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इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
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वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।
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पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।
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सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा ।
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा ।
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा ।
कितना सच्चाई से, मुझसे ज़िंदगी ने कह दिया,
तू नहीं मेरा तो कोई, दूसरा हो जाएगा ।
मैं ख़ुदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तो,
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा ।
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आस्माँ,
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।
रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर.
क्या खबर थी मुझसे वो इतना खफा हो जायेगा.
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