Thursday, February 1, 2018

Budget 2018


I was asked by two different newspapers for my quick opinion on the Budget 2018. Just copying those here:

This budget does not look like an election year budget at all. The fiscal prudence is surprisingly anti-political. I find the focus on health coverage, health insurance, and medical education is commendable. The agricultural sector also gets a lot of attention and money. While there are a lot of sops, efforts of structural reforms are largely missing. MSME getting a respite is also a welcome step, which is in sync with the goals of MUDRA, skill development, and job creation. Another good aspect is the continued emphasis on disinvestment and ease of doing business.

While the salaried class may find the budget dry for them, the government has already benefitted them by pay commission, MSMEs, business and entrepreneurship opportunities, mega spending on infrastructure, and insurance schemes. However, such indirect benefits may easily get overlooked in an election year, posing a political challenge.

Overall, like previous NDA budgets, this one is also an economist's budget, perhaps more on welfare side this time. However, ambitious targets, implementation issues, state elections, and political realities make the budget assumptions fragile.




चुनाव वर्ष में भी इस प्रकार का अर्थशास्त्र उन्मुख बजट निश्चय ही विस्मयकारी है। मेरी राय में स्वास्थ्य सुविधाओं, संरक्षा, और शिक्षा के प्रति यह निष्ठा सराहनीय है और समाज के निम्नतम आय वर्ग के लिए विशेषत: सहायक सिद्ध होगी। बजट का दूसरा केन्द्र कृषि क्षेत्र है, जो सामाजिक न्याय एवं समरसता के लिए आवश्यक है।  हालांकि कृषि हेतु बजटीय प्रावधान तात्कालिक सांत्वना देते प्रतीत होते हैं, इन से किसी भी प्रकार का दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार होता नहीं दिखता। जब तक इस दिशा में ठोस प्रयास न किये जाएँ, कृषि क्षेत्र की परनिर्भरता एवं अस्थिरता बानी रहेगी. लघु उद्योगों के प्रति इस सरकार का रुख पहले की भाँति ही सकारात्मक दीखता है। लघु उद्योगों को बजट की कर - सहायता सरकार की मुद्रा योजना, दक्षता, एवं रोज़गार सृजन से सटीक तालमेल इंगित करता है। विनिवेश, निर्यात, आधारिक संरचना, स्वरोज़गार, और व्यापार सरलीकरण आदि के कारण यह बजट दीर्घकालिक सुधारों की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पग है।  

जहाँ यह बजट समाज के निम्नतम ३० प्रतिशत के लिए अत्यधिक सहानुभूतिपरक लगता है, समाज का मध्यम वर्ग इसे लगभग निराशाजनक मान सकता है। यद्यपि मध्यम वर्ग और वैतनिक वर्ग को कोई सीधा लाभ मिलता नहीं दिखता, इस वर्ग को नवरोज़गार सृजन, उद्यमिता, आधारभूत संरचना, और आर्थिक विकास का सर्वाधिक लाभ होने की आशा है। हालांकि एक चुनावी वर्ष में यह आशावाद और जन-प्रज्ञता सरकार को भारी पड़ सकती है। 

सर्वसमावेशी, मेरी राय में, दीर्घकालिक सुधार के प्रति निष्ठा और राजकोषीय स्थिति के प्रति विवेक बनाये रखना किसी अर्थशास्त्री के लिए भले ही स्वप्न सरीखा हो, सरकार के लिए यह राजनैतिक तौर पर महंगा साबित हो सकता है।

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