बारिश के दिन बड़े उदासी लगते हैं
ताज़े पत्ते सारे बासी लगते हैं
बारिश और हम-तुम भीगें स्कूटर पर
शीशे कार के सत्यानासी लगते हैं
गलियों में बारिश कीचड़ जो असली थे
दसवीं मंज़िल से आभासी लगते हैं
अंदर बाहर सब पानी हो जाता है
सारे जन पानी के वासी लगते हैं
पोखर भरते एक छलावा हैं लेकिन
कुछ दिन को तो बारामासी लगते हैं
व्यस्त परिंदे, उगते अंकुर, हँसते बच्चे
तुम बिन मुझको सब उपहासी लगते हैं
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