Saturday, February 9, 2008

कुछ सम्बोधन

साँप (अज्ञेय)

साँप!
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी
तुम्हे नहीं आया।
एक बात पूछूँ - उत्तर दोगे?
तब कैसे सीखा डसना,
विष कहाँ पाया?


गुलाब (निराला)

अबे - सुन बे गुलाब!
भूल मत गर पायी खुशबू - रंगो-आब।
खून चूसा खाद का तूने,
अरे अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा कैपीटलिस्ट।


आम (शरद जोशी)

आम!
तुम लँगड़े क्यों कहलाते हो?
जबकि तुम ऐसे नहीं हो:
और यदि लँगड़े न हो
तो बताओ
क्या तुम पैर वाले हो?


और एक तुम्हारे प्रति

चन्द्रा!
तुम्हारे हों ढेर सारे बच्चे
एक-दो नहीं, कम-से-कम
छ: तो हों लड़के ही लड़के!
उन्हें पढ़ाना-लिखाना
डाक्टर-इंजीनियर बनाना,
और यदि कोई निकम्मा
लिखने लगे कविताएँ
तो चन्द्रा,
उसे भी निभाना।

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