साँप (अज्ञेय)
साँप!
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी
तुम्हे नहीं आया।
एक बात पूछूँ - उत्तर दोगे?
तब कैसे सीखा डसना,
विष कहाँ पाया?
गुलाब (निराला)
अबे - सुन बे गुलाब!
भूल मत गर पायी खुशबू - रंगो-आब।
खून चूसा खाद का तूने,
अरे अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा कैपीटलिस्ट।
आम (शरद जोशी)
आम!
तुम लँगड़े क्यों कहलाते हो?
जबकि तुम ऐसे नहीं हो:
और यदि लँगड़े न हो
तो बताओ
क्या तुम पैर वाले हो?
और एक तुम्हारे प्रति
चन्द्रा!
तुम्हारे हों ढेर सारे बच्चे
एक-दो नहीं, कम-से-कम
छ: तो हों लड़के ही लड़के!
उन्हें पढ़ाना-लिखाना
डाक्टर-इंजीनियर बनाना,
और यदि कोई निकम्मा
लिखने लगे कविताएँ
तो चन्द्रा,
उसे भी निभाना।
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