Sunday, March 21, 2021

तुम रहती थीं साथ मेरे जब...

कभी सुमित्रा नंदन पंत ने लिखा था - 

वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान।  

आँखों से निकल कर चुपचाप, बही होगी कविता अजान।। 


और इसी मानस में कभी पी. बी. शेली ने लिखा होगा कि "Our sweetest songs are those that tell of our saddest thoughts." या कि जिसको हरिवंश राय बच्चन ने सोचा था ऐसे - 

जिन नग़मों में शायर अपना ग़म रोते हैं, 

वो उनके सबसे मीठे नग़मे होते हैं।  


बड़े-बड़े लोगों ने कहा है तो सही ही होगा।  तुम्हें सामने बिठा कर लिखना मुश्किल था।  लेकिन तुम्हें सोचकर लिखना, वो भी इस मानूस-ओ-मनहूस तन्हाई में ... तख़य्युल के समन्दर में ज्वार है जैसे। 

ख़ैर, जो बड़े लोग दो मिसरों में लिख गए, वही कहने को हमको पूरी नज़्म लगती है। तुमको सुनाता ये शायद सामने बिठा कर, जैसे तुमको पसन्द था। लेकिन तुम सामने होतीं तो फिर ये नज़्म ही क्यूँकर होती। सो ऐसे ही सुन लो और मेरी आवाज़ में "इमैजिन" कर लो।  मेरी आवाज़ भूली तो नहीं ना ?


***

तुम रहती थीं साथ मेरे जब,

दूर सही पर पास मेरे जब,

कितने सारे काम-काज,

झगड़े-झंझट 

और 

लोग-बाग सब - 

बीच में आ जाते थे अपने, 

मुझको बिज़ी कर देते थे

और

तुमको जुदा कर देते थे ! 


अब तुम मेरे साथ नहीं जब,

पास हो दिल में 

लेकिन मेरे 

हाथ नहीं अब, 

सारी दुनिया सन्नाटी है,

काम एक भी 

ना बाकी है,

ऐसे दश्त के वीराने में 

कैसे तन्हाई काटी है,

तुम्हें क्या कहूँ 

मुझे भी नहीं 

ख़बर ज़रा सी।  


इस बेख़बरी के आलम में 

घर के अंदर, 

कभी मैं बाहर, 

सड़कों पर 

या वीरानों में, 

भटक रहा हूँ, 

बेमतलब की बात बनाता 

लाइट जलाता और बुझाता 

नज़्में कहता और भुलाता 

ख़ुद ही ख़ुद को 

नोच रहा हूँ, 

सोच रहा हूँ - 

तुम रहती थीं साथ मेरे जब,

दूर सही पर पास मेरे जब ... !!! 

***

हम, आज, अभी ! 

No comments:

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails