Monday, March 29, 2021

Musings


This was the post mentioned above, recalled on the Holi day today. The message was from a long lost junior-turned-friend, who often told me interesting and mostly appreciative things about my writing. After the brief chat above, we had a 34-minute conversation and a plan to meet soon. 

I don't know where all I have left footsteps to follow, marks to inspire, or words of wisdom. I never felt or intended that though but I'm told so often. 

Long ago, there was a website (probably called internet2.0) which helped in erasing every mark of one's existence from the internet. It was, sort of, internet suicide. I wonder if there is a newer version available somewhere. Can you help?

P.S. And that friend sent a nazm a few minutes after our phone call, after my blog post. Here it is:
नज़्म

मैंने अपनी आप मदद की
मैंने अपने आँसू पोछें
मैंने अपने ज़ख्मों पर 
ख़ुद पट्टी बाँधी
मैंने अपने टूटे दिल के हर टुकड़े को 
ठीक तरह से जोड़ लिया है
मैंने कुछ फ़िल्मो के सहारे 
फिर से हँसना सीख लिया है
मैंने ख़ुद को वक़्त दिया है
मैंने अपनी अलमारी में 
पड़ी किताबों के ऊपर से धूल हटाई
बाल कटाये शेव बनाई
मैं अपने हर शौक़ को फिर से ज़िंदा करके 
उनको पूरा करने का भी सोच रहा हूँ
अब मैं अकेला नहीं रहा हूँ 
अब मैं अपने साथ खड़ा हूँ

ये सबकुछ एहसान नहीं है
कर्ज़ है मेरा मेरे ऊपर
और किसी से आस नहीं थी
ये सब मैं ही कर सकता था
वक़्त वगरना इन आँखों में 
ना उम्मीदी भर सकता था
इक दिन मैं भी ट्रेन से कटकर 
मर सकता था।

~बालमोहन पाण्डेय

Sunday, March 21, 2021

तुम रहती थीं साथ मेरे जब...

कभी सुमित्रा नंदन पंत ने लिखा था - 

वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान।  

आँखों से निकल कर चुपचाप, बही होगी कविता अजान।। 


और इसी मानस में कभी पी. बी. शेली ने लिखा होगा कि "Our sweetest songs are those that tell of our saddest thoughts." या कि जिसको हरिवंश राय बच्चन ने सोचा था ऐसे - 

जिन नग़मों में शायर अपना ग़म रोते हैं, 

वो उनके सबसे मीठे नग़मे होते हैं।  


बड़े-बड़े लोगों ने कहा है तो सही ही होगा।  तुम्हें सामने बिठा कर लिखना मुश्किल था।  लेकिन तुम्हें सोचकर लिखना, वो भी इस मानूस-ओ-मनहूस तन्हाई में ... तख़य्युल के समन्दर में ज्वार है जैसे। 

ख़ैर, जो बड़े लोग दो मिसरों में लिख गए, वही कहने को हमको पूरी नज़्म लगती है। तुमको सुनाता ये शायद सामने बिठा कर, जैसे तुमको पसन्द था। लेकिन तुम सामने होतीं तो फिर ये नज़्म ही क्यूँकर होती। सो ऐसे ही सुन लो और मेरी आवाज़ में "इमैजिन" कर लो।  मेरी आवाज़ भूली तो नहीं ना ?


***

तुम रहती थीं साथ मेरे जब,

दूर सही पर पास मेरे जब,

कितने सारे काम-काज,

झगड़े-झंझट 

और 

लोग-बाग सब - 

बीच में आ जाते थे अपने, 

मुझको बिज़ी कर देते थे

और

तुमको जुदा कर देते थे ! 


अब तुम मेरे साथ नहीं जब,

पास हो दिल में 

लेकिन मेरे 

हाथ नहीं अब, 

सारी दुनिया सन्नाटी है,

काम एक भी 

ना बाकी है,

ऐसे दश्त के वीराने में 

कैसे तन्हाई काटी है,

तुम्हें क्या कहूँ 

मुझे भी नहीं 

ख़बर ज़रा सी।  


इस बेख़बरी के आलम में 

घर के अंदर, 

कभी मैं बाहर, 

सड़कों पर 

या वीरानों में, 

भटक रहा हूँ, 

बेमतलब की बात बनाता 

लाइट जलाता और बुझाता 

नज़्में कहता और भुलाता 

ख़ुद ही ख़ुद को 

नोच रहा हूँ, 

सोच रहा हूँ - 

तुम रहती थीं साथ मेरे जब,

दूर सही पर पास मेरे जब ... !!! 

***

हम, आज, अभी ! 

Monday, March 15, 2021

हमेशा देर कर देता हूँ मैं

As you have always known, I live in the past, for most of my life is there. Now, even more so. And I analyse those things past a lot. So I have realised yet another aspect - an anomaly, if you may. I have done everything at the wrong time, mostly with a delay. Proof, you say? Well, here are a few! 

You remember those small medicine tablets? Well, I couldn't swallow one till pretty late. I think till class 9, I had to ask for a syrup or mom had to crush the tablets to powder form. Then, one fine day, I got embarrassed enough and I practiced swallowing the tablets with help of a bottle full of Hajmola tablets. 

Another delayed thing in my life was learning to tie and untie those knots of pajama trousers. I didn't wear one because I couldn't tie it well. Worse, I couldn't untie one in time for, you know, for what! I think this skill had to wait till my undergraduate years. 

Yet another one was learning calculus and matrices. I had business maths in class 12, which was very basic. Finally, I took a tuition to learn the calculus, matrices, and a lot of what everyone would do in class 12. I think this was around my post-grad, when I finally learnt sitting with class 11 students in the tuition. 

But you know, which delay feels the worst of all? Yes! That one! I have conquered the other delays albeit with a delay... but this one... I think I have got too late on this one! So let me fall silent for this one and hear it from Munir Niazi: 


ज़रूरी बात कहनी हो कोई वादा निभाना हो

उसे आवाज़ देनी हो उसे वापस बुलाना हो

                                                             हमेशा देर कर देता हूँ मैं

बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो

किसी को याद रखना हो किसी को भूल जाना हो

किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो

हक़ीक़त और थी कुछ, उस को जा के ये बताना हो

                                                             हमेशा देर कर देता हूँ मैं

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails