Writing these days has been quite a luxury. So when I wrote a long story for Facebook, thought of sharing here too - just for the record and longevity of the post. Original Hindi post comes after the English (rough) translation.
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Go watch Airlift. Can you recall whose government was that in August 1990? PM VP Singh and Foreign Minister IK Gujral. There were warnings and signs of tensions and problems but all the great government of India did was to hug Saddam Hussain, the aggressor - and got no concessions in return. (Read History - IK Gujral did that at the height of aggression). 1.70 lakh Indians were evacuated but not in Kuwait. They had to travel a 1000 kilometers across borders to reach Oman. The operation lasted for 2 months and had a clerk not fought his way through, IK Gujral would have happily got those thousands Indians killed.
Go back a little more and recall August 1972 - Idi Amin, the mad dictator of Uganda, warned Indians to leave his country within 90 days. The Iron Lady - Indira Gandhi - warned him against aggression and Idi Amin couldn't care less. Sadly, Indira's warnings worked in India only. We severed our diplomatic relations suddenly, making escape even more miserable for those thousands of Indians.
Now, recall Operation Raahat - Yemen, April 2015. The aggression started on March 27, 2015 and government of India started the evacuation on April 1st. The operation was complete on 11 April, 2015. Before you jump on numerical comparisons, GoI was issuing warnings much in advance, had slowed down visa issues, and had taken the non-essential staff off-duty. This is what is called the governance and the government!
Now don't you forget whose government was there in April 2015!!
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एयरलिफ्ट देखिये. अगस्त १९९० में किसकी सरकार थी याद करिये. विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार और विदेश मंत्री थे इन्द्र कुमार गुजराल. महीनों तक बढ़ते तनाव के बावजूद कोई तैयारी नहीं की गयी थी. १ लाख ७० हज़ार को बचाया ज़रूर लेकिन कुवैत जाकर नहीं, १ हज़ार किलोमीटर दूर ओमान बुलाकर. दो महीने तक एयरलिफ्ट करना पड़ा. अगर एक क्लर्क ना जूझा होता तो गुजराल साहब सद्दाम हुसैन से गले ही मिलते रहते बस (इतिहास पढ़िए - खाड़ी युद्ध के दौरान हमलावर सद्दाम से गले मिले थे गुजराल और अमरीका को कोसा था - क्यों?!!).
इसके बाद याद करिये १९७२ में भारतीयों को ९० दिन की चेतावनी देने वाले ईदी अमीन के दिन. उन ९० दिनों के दौरान युगांडा को चेतावनी देने वाली इंदिरा सरकार सिवाय एक तिनका न हिला पायी. बस अपने कूटनीतिक रिश्ते तोड़ लिए और युगांडा में बसे भारतीयों का निकलना और दूभर कर दिया. अपने दम पर कुछ ४-५ हज़ार भारतीय भारत पहुंचे और हज़ारों अन्य दुसरे देशों की शरण में जाने को मजबूर हुए.
इसके बाद याद करिये २०१५ का यमन में चला ऑपरेशन राहत. २७ मार्च को हमला हुआ और चौथे दिन से "राहत" शुरू. ११ अप्रैल को ऑपरेशन पूर्ण. इस हमले के महीनों पहले से ही भारत सरकार चेतावनी दिए जा रही थी. वीसा देने में कमी कर दी थी. गैर-ज़रूरी स्टाफ को निकाल लिया था. इसको कहते हैं सरकार. अब याद रखियेगा कि अप्रैल २०१५ में किसकी सरकार थी.
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Go watch Airlift. Can you recall whose government was that in August 1990? PM VP Singh and Foreign Minister IK Gujral. There were warnings and signs of tensions and problems but all the great government of India did was to hug Saddam Hussain, the aggressor - and got no concessions in return. (Read History - IK Gujral did that at the height of aggression). 1.70 lakh Indians were evacuated but not in Kuwait. They had to travel a 1000 kilometers across borders to reach Oman. The operation lasted for 2 months and had a clerk not fought his way through, IK Gujral would have happily got those thousands Indians killed.
Go back a little more and recall August 1972 - Idi Amin, the mad dictator of Uganda, warned Indians to leave his country within 90 days. The Iron Lady - Indira Gandhi - warned him against aggression and Idi Amin couldn't care less. Sadly, Indira's warnings worked in India only. We severed our diplomatic relations suddenly, making escape even more miserable for those thousands of Indians.
Now, recall Operation Raahat - Yemen, April 2015. The aggression started on March 27, 2015 and government of India started the evacuation on April 1st. The operation was complete on 11 April, 2015. Before you jump on numerical comparisons, GoI was issuing warnings much in advance, had slowed down visa issues, and had taken the non-essential staff off-duty. This is what is called the governance and the government!
Now don't you forget whose government was there in April 2015!!
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एयरलिफ्ट देखिये. अगस्त १९९० में किसकी सरकार थी याद करिये. विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार और विदेश मंत्री थे इन्द्र कुमार गुजराल. महीनों तक बढ़ते तनाव के बावजूद कोई तैयारी नहीं की गयी थी. १ लाख ७० हज़ार को बचाया ज़रूर लेकिन कुवैत जाकर नहीं, १ हज़ार किलोमीटर दूर ओमान बुलाकर. दो महीने तक एयरलिफ्ट करना पड़ा. अगर एक क्लर्क ना जूझा होता तो गुजराल साहब सद्दाम हुसैन से गले ही मिलते रहते बस (इतिहास पढ़िए - खाड़ी युद्ध के दौरान हमलावर सद्दाम से गले मिले थे गुजराल और अमरीका को कोसा था - क्यों?!!).
इसके बाद याद करिये १९७२ में भारतीयों को ९० दिन की चेतावनी देने वाले ईदी अमीन के दिन. उन ९० दिनों के दौरान युगांडा को चेतावनी देने वाली इंदिरा सरकार सिवाय एक तिनका न हिला पायी. बस अपने कूटनीतिक रिश्ते तोड़ लिए और युगांडा में बसे भारतीयों का निकलना और दूभर कर दिया. अपने दम पर कुछ ४-५ हज़ार भारतीय भारत पहुंचे और हज़ारों अन्य दुसरे देशों की शरण में जाने को मजबूर हुए.
इसके बाद याद करिये २०१५ का यमन में चला ऑपरेशन राहत. २७ मार्च को हमला हुआ और चौथे दिन से "राहत" शुरू. ११ अप्रैल को ऑपरेशन पूर्ण. इस हमले के महीनों पहले से ही भारत सरकार चेतावनी दिए जा रही थी. वीसा देने में कमी कर दी थी. गैर-ज़रूरी स्टाफ को निकाल लिया था. इसको कहते हैं सरकार. अब याद रखियेगा कि अप्रैल २०१५ में किसकी सरकार थी.
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