Wednesday, May 17, 2023

ओले से मतलब, बातें बेमतलब

This blog is for writing, the other blog is for photography. What happens when you want to post a photo there with a small caption and that caption extends itself to a whole poem? Do I post the poem here without the photo and the photo there without the poem? Why not post both the photo and the poem in both places? After all, I listen through photography and I paint through poetry!!

उस दिन जो घिरा था बादल 
कैसे टूट के बरसा पागल 
उसने फिर बरसाया ओले 
जैसे कोई दिल को खोले 
मेरे हाथ आया इक ओला 
ठंडा गीला, मुझसे बोला 
मैं तो भंगुर, बना बरफ़ से 
आता हूँ मैं उसी तरफ से 
जिधर गयी थी प्रिया तुम्हारी 
जिसकी याद ना तुमने बिसारी 
वो भी थी तुमको ही रोती 
थी जीवन के सुख क्षण खोती 
सुनो तुम्हे तो सब ही पता है 
उसकी फ़ितरत, नहीं खता है 
तुम ही कर लो उसको कॉल इक 
रिश्ता फिर से करो अलौकिक!
थोड़ा चकित हुआ मैं, बोला 
सुन, तू तो है भंगुर ओला 
शाश्वत प्रेम का तुझपे असर क्या 
रिश्तों की गर्मी की खबर क्या 
फिर से उन आँखों में खोना 
मतलब बेमतलब का रोना 
जिसने तोड़ा मेरा भरोसा 
उसको न कोसा न बोसा 
अब जा पिघल, तू फिर से जल बन 
नदियों में मिल फिर बादल बन 
उसके घर की तरफ तू जाना 
तो उसको फिर ये बतलाना
रस्ते बिछड़ के फिर नहीं मुड़ते 
दर्द पुराने यूं नहीं उड़ते 
रखेंगे उनको यादों में
लेकिन उनसे अब नहीं जुड़ते!!



 

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