Saturday, October 10, 2020

जिस झोली में सौ छेद हुए ...

एक न एक दिन तो ऐसा होना ही था। लेकिन इतनी जल्दी होगा ये नहीं सोचा था। या फिर हमेशा की तरह, सोचना नहीं चाहा था कभी। लेकिन हर शै की तरह तुमको भी एक दिन खोना ही था। 

इस कैम्पस से कुछ समय से मन भर सा गया है। और मन भरपूर होकर नहीं भरा। एक दो जगह थीं, जहाँ जाकर मन पूर जाता था। थोड़ा सा escape, थोड़ा सा जीवन, थोड़ी सी शान्ति। 


उसी में से एक जगह कल फिर गया था। सामने दीवार बनते देखी। जल्द ही उतना दिखाव भी बंद हो जाएगा जो कल देखा। शायद 3 महीने, या छः। एक न एक दिन तो ऐसा होना ही था। लेकिन इतनी जल्दी होगा ये नहीं सोचा था। या फिर हमेशा की तरह, सोचना नहीं चाहा था कभी। लेकिन हर शै की तरह तुमको भी एक दिन खोना ही था। 

इंशा जी उठो अब कूच करो
इस शहर में जी का लगाना क्या
दीवानों की सी न बात करे
तो और करे दीवाना क्या !!

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